29 सितंबर यानी कल से नवरात्र आरंभ हो गया । धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन माता पार्वती कैलास से धरती पर अपने मायके आती है । माता का आगमन कई मायनों में महत्वपूर्ण माना जाता है। माता का आगमन जहां भक्तों में धार्मिक उत्साह और आनंद लेकर आता है वहीं भविष्य में होने वाली कई घटनाओं का संकेत भी देता है। यही वजह है कि प्राचीन काल से मां दुर्गा आगमन और विदाई को ज्योतिषशास्त्र में महत्वपूर्ण माना जाता रहा है। माता जिस वाहन से आती हैं और जिस वाहन से जाती हैं उससे पता चल जाता है कि आने वाला एक साल देश दुनिया और आपके लिए कैसा रहने वाला है?
इस बार माता गज पर सवार होकर आई है और अपने साथ देश भर में बारिश लायी है । जब भी माता गज पर सवार आती है तो देश भर में बारिश होती है और इससे कृषि क्षेत्र में उन्नति होता है। इस बार कुछ ऐसा हुआ है की बिहार में आई भीषण बाढ़ के वजह से गंगा का जलस्तर बढ़ गया है। गंगा तट पर स्थित माँ चंडिका का मंदिर पानी से लबा-लव है । वैसे तो गंगा हर एक साल माँ चंडिका से मिल कर ही जाती है । लेकिन ऐसे बहुत काम बार ही देखने को मिला की नवरात्री के अवसर पर भक्त माँ चंडिका के दर्शन नहीं कर पायें हो । माँ चंडिका की पूजा की विशेषता दुर्गा पूजा के दिनों और भी बढ़ जाती है लोग घंटो कतार में खड़े होकर माँ की पूजा अर्चना करते है।
लेकिन ऐसा लगता है की माँ चंडिका इस बार नवरात्री के अवसर पर भक्तो को दर्शन नहीं दे पायेगी। मंदिर के गुफा में लगभग पांच फीट पानी भर आया है। मंदिर के मुख्यद्वार को बंद कर दिया गया है।अतः सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए माँ चंडिका न्यास समिति ने यह निर्णय लिया की जब तक मंदिर में बाढ़ की स्थिति बनी रहेगी तब तक श्रधालु मुख्यद्वार पर ही पूजा करेंगे। जलस्तर सामान्य होने पर पुनः विचार कर मंदिर का द्वार खोल दिया जाएगा।
48 वर्षो बाद ऐसा हुआ जब नवरात्री के अवसर पर भक्त माँ चंडिका के दर्शन नहीं कर पायेंगे। लोगो का कहना है की 1971 में जब मुंगेर में भीषण बाढ़ आई थी तो कुछ ऐसा ही हुआ था की नवरात्री के अवसर पर भक्त चंडिका माँ के दर्शन नहीं कर पाए थे।
मुंगेर की मां चंडिका क्या खास मान्यता है ?
ऐसा माना जाता है की माँ के दर्शन करने से भक्तो के नेत्र सम्बंधित रोग दूर हो जाते है। ऐसे तो यहाँ रोज़ भक्तो का आना जाना लगा होता है परन्तु नवरात्री के पावन महीने में यहाँ माँ के दर्शन के लिए भक्तो का हुजूम लगा रहता है।इन 9 दिनों माँ के दर्शन हेतु भक्त रात्री के 12 बजे से ही क़तार में खड़े हो जाते है।सुबह 3 बजे से माँ की पूजा शुरू होती है और शाम में श्रृंगार पूजा होती है।भक्तो का मानना है की इन दिनों माँ की अर्चना करने से मनोकामनाए पूर्ण होती है।
सदियों पुराना है माँ का यह मंदिर, कुछ लोगो का मानना है की महाभारत काल में राजा कर्ण खौलते तेल में बैठ कर माँ चंडी की आराधना करते थे और माँ चंडी उनकी आराधना से प्रसन्न होकर जरुरतमंदो की सहायता के लिए सवा मन सोना देती जिसे वो कर्णचौरा में जाकर गरीबो में बांट दिया करते थे।वहीँ कुछ लोगो का मानना है की शक्तिपीठ की उत्पत्ति राजा यक्ष, उनकी पुत्री सती अव भगवान शिव के क्रोध का प्रतीक है।
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